29 Aug 2010

नाते ऋणानुबंधाचे....!!

नाते ऋणानुबंधाचे..


ऋणानुबंधाचे...... ते हक्क सांगताना
पुलकित होय अवनी, ओहळ रांगताना...!


का उठती रोमांच? अलगद स्पर्श होता
ते गगनही उल्हसित, मेघ पांगताना ....!


गम्य कसे गवसते? तृष्णा कोण जाणे
शहारते पाकळी, पतंग खेळताना ......!


अस्पर्श रक्षिलेला, जपून जतन ठेवा
ते हृदयही कंपित, तार छेडताना ......!


स्पर्श उत्कटतेचे, सख्यांस बळ देते
तन्मय ती तनूही, स्वरूप चाळताना...!


फेकुनी दूर अभये, शाल काळोखाची
रजनी लेत लाली, भानू उगवताना...!


                                   गंगाधर मुटे
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